Narendra Modi का Gujarat क्या सत्ता का अभेद्य दुर्ग बन गया है | वनइंडिया हिन्दी

2017-12-19 28

The Gujarat election result may have ended up even closer but for Prime Minister Narendra Modi, who spearheaded the Bharatiya Janata Party's charge in the last leg of the campaign like a seasoned batsman who hits his way through the slog overs to take his side over the finishing line almost single-handedly, according to political analysts. On his home turf, the PM addressed as many as 34 rallies, emphasising on the need to retain a "stable government", raising farmers' issues in rural areas and reminding voters of the damage that caste politics can do to the unified Gujarati identity.

गुजरात चुनाव के नतीजे लगभग एग्जिट पोल्स के मुताबिक ही रहे. अनुमान के मुताबिक बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो गई. हालांकि कांग्रेस भी पहले की अपेक्षा ज्यादा मजबूती से उभरकर सामने आई है. 22 साल बाद गुजरात में कांग्रेस सत्ता की डेहरी से थोड़ी दूर ठहर गई. वापसी की अगली कोशिश के लिए अब उसे कम से कम पांच साल और इंतज़ार करना पड़ेगा. एक तरह से देखें तो देश में गुजरात बीजेपी का अभेद्य दुर्ग बन चुका है. और उससे ज्यादा नरेंद्र मोदी का ऐसा अभेद किला जिसमें सेंधमारी के लिए जमीन से लेकर आसमान तक मेहनत करनी होगी... 2001 में नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाकर भेजा गया था. उसके बाद से अभी तक ये पांचवां चुनाव है जो मोदी के चेहरे पर लड़ा गया और बीजेपी को उसमें कामयाबी मिली. … गुजरात में हिंदुत्व का चेहरा करार दिए मोदी ने कई ऐसे फैसले किए जिसने व्यापक स्तर पर आम गुजरातियों को फायदा पहुंचाया और गुजरात विकास मॉडल देश के सामने आया जिसे साधकर मोदी आज देश के प्रधानमंत्री बनें... हालांकि मोदी के पीएम बनने के बाद गुजरात में औद्योगिक विरोध तो नहीं हुआ लेकिन कुछ ऐसे आंदोलन खड़े हुए जिससे लोगों की जनभावना भड़की. सबसे पहले पाटीदारों ने पिछड़ा आरक्षण की मांग की. हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार अनामत आरक्षण समिति का गठन हुआ. पाटीदार बहुल 83 विधानसभा सीटों में इसका व्यापक असर नजर आया. कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन और हिंसा की घटनाएं मिलीं. इसके बाद ऊना में गोरक्षकों द्वारा दलित उत्पीड़न का मामला सामने आया. जिग्नेश मेवानी ने इसे बीजेपी के खिलाफ गुजरात समेत पूरे देश में मजबूत आंदोलन के तौर पर खड़ा कर दिया. उन्होंने 'आजादी कूच' अभियान चलाया. लेकिन ऐसे व्यापक आंदोलनों के बावजूद बीजेपी को 2017 के विधानसभा चुनाव में वैसा नुकसान नहीं हुआ... 2017 में गुजरात में बीजेपी को सीटें भले ही पिछली बार की तुलना में कम मिली हैं पर यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास अंत में सिर्फ जीत ही याद रखता है.

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